हर व्यक्ति अधूरा है
पर कहता खुद को पूरा है
यही तो विडंबना है
की मानता नहीं
कुछ भी जानता नहीं
यथार्थ और झूठ में फर्क करना
वफ़ा और बेवफाई को अलग करना
किस के आँख है,कौन अँधा है
कौन का अच्छा,कौन सा बुरा धंधा है
कितने लोग जानते है
पर सभी खुद को ज्ञानी मानते है
माने क्यों ना…
परमेश्वर की बनाई -मानव एक अमूल्य कृति है
सृष्टी के चुम्बकीय गुण की यही तो इति है
अहम् भाव इस में छिपा है
कहीं पश्चाताप नहीं दिखा है
पश्चाताप क्यों हो …
बुद्धिजीवी वर्ग कोई गलती करता ही नहीं
जो पश्चाताप करे
वो पुण्य करता है -क्यों पाप करे
सुबह शाम दो रोटी कुते को डाली जाती है
पर आदमी भूखा है तो रहे
छीनना जिस को आता है
वही रोटी को पाता है
फिर कहते है आतंकवादी बन गया
जिस देश पे पैदा हुआ
उसी का दुश्मन बन गया
ये अधूरापन -जो हर व्यक्ति में है
भरने के लिए त्याग करना पड़ेगा
इच्छाओं का त्याग
अहंकार का त्याग
झूठ का त्याग
संचय का त्याग
और ये त्यागना दुष्कर कार्य है
ये नहीं हो सकता
अत -अधूरापन अपना अस्तित्व बरकरार रखेगा
जब तक आदमी का अस्तित्व है -यह भी रहेगा
फिर इस से मुख मत मोड़ो
खुद को पूरा कहने की जिद छोड़ो
