आज अचानक मेरे भीतर था एक कोहराम मचा
अच्छी और बुरी वृतियों में सुर असुर संग्राम मचा|
चलता रहा ये घंटो तक पूरे अस्तित्व पे छा गया
शरीर और मन सब ही इस की चपेट में आ गया|
कुछ समझ ना आता था समय बीतता जाता था
अंजाम होगा कुछ इस का ये नही दिख पाता था|
इस क्षण में इस पल में मैं साक्षी था मैं गौण था
क्या होगा इस मंथन से मैं हतप्रभ था मौन था|
दिन भर की कसरत ने मुझे पूरा झझकोर दिया
अपने भीतर एक परिवर्तन था मैंने अनुभव किया|
सारा जीवन खोया यूं ही बाहर केवल तकता रहा
जहाँ घ्यान करना था मुझे वहाँ से मैं बचता रहा|
आज पहली बार मुझे अपने पर अभिमान था
बाह्य संग्राम खत्म हुआ अपने से संग्राम था||