आज अचानक मेरे भीतर
एक अजब कोहराम मचा
अच्छी और बुरी वृत्तियों मे
सुर असुर संग्राम मचा ।।
चलता रहा ये घंटों तक
पूरे अस्तित्व पर था रचा
ऊपर नीचे आगे पीछे
सब ओर ये था बसा ।।
समझ कुछ नहीं आता था
समय बीतता जाता था
कुछ निष्कर्ष निकलेगा
नही मुझे दिख पाता था ।।
ऐसे क्षण में ऐसे पल में
मैं साक्षी था मैं गौण था
क्या निकलेगा मंथन से
मैं हत्प्रभ था मौन था ।।
जो प्रबल है ताकतवर है
जीत उसी को मिलती है
यही सुना था आज तक
मरी कली ना खिलती है ।।
दिनभर की इस कसरत ने
मुझे पूरा झकझोर दिया
अपने भीतर नया कुछ
मैनें था अनुभव किया ।।
इस चिंतन इस मनन से
एक मुझे ये लाभ हुआ
क्या अच्छा है क्या बुरा है
ठीक ठीक हिसाब हुआ ।।
बुरे को अच्छा करना है
अच्छे को अच्छा रखना है
अपने भीतर अब मुझको
नियमित झाँका करना है ।।
सारा जीवन खोया यूँ ही
बाहर में तकता रहा
जहाँ होना था मुझको
वहाँ होने से बचता रहा ।
आज पहली बार मुझे
अपने पर अभिमान था
बाह्य संग्राम था औरों से
ये अपने से संग्राम था ।।