दर्पण पर गर जमी धूल हो
तो चेहरा नजर नही आता
विचारों में उलझा मन भी
आत्मा को देख नही पाता
विचारों का प्रवाह रुके गर
तो मन हृदय में लीन होता
चित्त एकाग्र व ध्यान भीतर
तभी आत्मा का दर्शन होता
सब द्वन्दों से छुटकारा होता
जीव सच्चा आनन्द है पाता
सिर्फ शान्ति ही शांति जहाँ
आत्मदर्शन से वो पद आता
जीव का अंतिम लक्ष्य मोक्ष
धर्म अर्थ काम के बाद आता
निर्वाण और आत्मदर्शन भी
यहाँ मोक्ष को ही कहा जाता
जो अपने भीतर वो जगत में
खुद से ही जग जाना जाता
छोड़ सारी कवायद को बन्दे
लौट के घर क्यों नही आता