आभार उस परमात्मा का
जिसने ये जीवन दिया
मनुष्य रूप में मुझे
संसार में पैदा किया ।।
आभार मेरी माता का
जिसने मुझे जन्म दिया
बेपनाह प्रेम दिया और
संस्कारों का वर दिया ।।
आभार उस पिता का
जिसने मेरा पालन किया
मुँह से निकली हर ख्वाहिश
को जिसने पूरा किया ।।
आभार उन गुरुओं का
जीने का मर्म दिया
ज्ञान, विज्ञान और धर्म
सब में फिर शिक्षित किया ।।
आभार धरती माता का
जिसने मुझे धारण किया
सहा जिसने सब यहाँ
अपना सब अर्पित किया ।।
आभार उस प्रकृति का
जिसने मुझे पोषण दिया
स्थावर जंगम सबने मिल
मेरा फिर रोपण किया ।।
आभार सूर्य रश्मि का
जग में उजियारा किया
मिटाकर अँधियारे को
जीवन को रोशन किया ।।
आभार उस चंद्रमा का
एक विहंगम दृश्य दिया
फैला हुआ तिमिर मिटा
निशा को आलोकित किया ।।
आभार फैले नभ का भी
जिसने विशाल अन्चल दिया
सब कुछ समा ले अपने में
ऐसा जीवंत मंजर दिया ।।
आभार मस्त पवन का
गति सा तौहफ़ा दिया
प्राण बन महके तन में
श्वास से पूरित किया ।।
आभार शीतल जल का भी
जिसने मुझे तृप्त किया
नदिया और सागर लहरायें
धरती को मधुबन किया ।।
आभार विलक्षण बुद्धि का
तर्क जो मुझको दिया
नीर क्षीर विवेक का
फर्क फिर जिसने किया ।।
आभार मन व इन्द्रियों का
इच्छाओं को पैदा किया
इनके कारण दुनिया देखी
अन्तर्मुखी इन्होने किया ।।
आभार शरीर के अंगों का भी
जीवन को यथार्थ किया
मिलकर काम करते हुए
जीना मेरा चरितार्थ किया ।।
आभार मित्रों व रिश्तों का
जीने का कारण दिया
इन सबने मिल कर ही
आसान मेरा जीवन किया ।।
आभार सभी सहयोगियो का
सपना मेरा पूरा किया
कदम से कदम मिलाकर
हर पल साथ मेरा दिया ।।
आभार अदृश्य शक्तियों का
ना जाने कितना कुछ दिया
आधार है ये जीवन की
ना जाने कितना भला किया ।।
आभार उस परमात्मा का
जिसने ये जीवन दिया
मनुष्य रूप में मुझे
संसार में पैदा किया ।।