इरादा पक्का हो तो

मुझे पता है मुझ से कुछ शिकायतें हुजूर है

कम से कम मेरी बात का जरिया जरूर है

 

इतने में खुश हो लेता है दिल मेरा दिलभर

कि तेरे दिल में मेरे लिए नफरत भरपूर है

 

इस मंजर को ना बदला तो मेरा नाम नही

तेरे नाम से नाम जोड़ने का मुझे फितूर है

 

मुझे पता प्यार की सीढ़ी चढ़ना नही आसां

इसी आग में आशिक़ के जलने का दस्तूर है

 

कितना भी सितम ढा मुझे विश्वास है खुद पर

मर जाऊँगा पर तेरे इश्क़ से ना हटना मंजूर है

 

इरादा पक्का हो तो दौड़े आते है भगवान भी

पास आएगी मंजिल जो दिखती अभी दूर है

 

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