उलझन के कारोबार में
संसार दिखाई देता है
व्यंग किस पर करूँ मैं
लांछन लगाऊ मैं किस पर
हर तरफ मौत का मुझे
प्रहार दिखाई देता है
दिलकशी किस से करूँ मैं
बाते बनाऊ मैं किस से
बेवफा मुझे आज हर
दिलदार दिखाई देता है
सलाम किस को करूँ मैं
हाथ जोडू मैं किसे
हर आदमी मुझे यहाँ
इज्जतदार दिखाई देता है
परवाह किस की करूँ मैं
यूँ ही छोड़ दूँ किसको
अफसानों की दुनिया में
हर शख्श बेकार दिखाई देता है
सच्चा किस को मानू मैं
झूठा किस को समझू
बहरूपियों का दुनिया मुझे
बाजार दिखाई देता है
परेशानी में पड़ गया हूँ
उलझ गया दिमाग है
कुछ और नहीं बस अपने
सर पे वार दिखाई देता है
उलझन के कारोबार में
संसार दिखाई देता है
व्यंग किस पर करूँ मैं
लांछन लगाऊ मैं किस पर
हर तरफ मौत का मुझे
प्रहार दिखाई देता है