उसने कहा – मैं चलूं
मैंने कहा – हाँ चलो
और वो चली गई
उसके जाने के बाद – मैंने सोचा
कितनी सहजता से कह दिया – के चलो
पर शायद जो शब्द जुबान पर थे
वो मन में नहीं थे
मन की वेदना को अगर वो समझती
तो यूं ना जाती
मुझे अब भी विश्वास नहीं होता
के वो चली गई
मेरे मात्र इतना कहने से
की हाँ चलो
ये पयार नहीं तो क्या है
भावनाओ का सम्पर्क
मन ही मन हो गया
जरूरत ही नहीं पड़ी
कुछ बयाँ करने की
शायद वो समझ गयी
इसलिए चली गई
वो साहस ना कर सकी रूकने का
क्यों की वो जानती थी
की मेरा कुछ कहना
उसको व्यथित कर जायेगा
और फिर रोना आएगा
इसलिए वो चली गई
यही तो सच्चा प्रेम है
जो अनकहे शब्दों
द्वारा ही ढल जाता है
एक परिवेश में
और एक दूसरे को समझ
लेने की मंजिल पूरी होती है
इस लिए वो चली गयी
जो सचमुच में है
उसे कहने से क्या फायदा
कहने से मूल्य गिर जाता है
सही मूल्याँकन तो चुप्पी से होता है
नजरों की ख़ामोशी के साथ
जब भावनाओ का मिलन होता है
तब प्रेम की उत्पत्ति होती है
और यह प्रेम नयूटोनिक प्रेम होता है
शायद यह हो गया था
इसलिए वो चली गयी