जाने क्यों लगता है मुझे
तक़दीर मेरी सो गयी
मिली थी भीड़ में मुझे वो
भीड़ में ही खो गयी
ढूंढता रहा मंजर मंजर
नजर कहीं नहीं आई
शायद जिन्दगी से थक कर
गहरी नींद सो गयी
आता कुछ ना नजर था
शायद आँखे बंद थी
चलता रहा चलता रहा
ठोकर लगी और गिर पड़ा
मुझे लगा किसी ने छुआ
कंधे को मेरे प्यार से
कोन हो सकता है ये
आया यही दिमाग है
जैसे ही आँखे खुली
सामने मेरी पसंद थी
आता कुछ ना नजर था
शायद आँखे बंद थी