कालांतर में बुद्ध ने कहा
अपने दीपक आप बनो
स्वयं ही स्वयं को जानो
खुद अपनी पहचान बनो
अपने आप से पूछा मैंने
आज मेरा पता बता दे
कहाँ रहता हूँ कौन हूँ मैं
तू ही मुझे रास्ता दिखा दे
मैं बोला खुद अपने से
तू तो मुझे कभी से जाने
तू मुझ को देह समझे है
इसी कारण से ना पहचाने
कभी मुझ को समझे मन
और कभी बुद्धि ही माने
कभी इंद्रियां कभी पंचभूत
कभी मुझे सप्तधातु जाने
मैं इन मे से कुछ भी नही
मैं अपने मे स्थित आत्मा
मेरे ऊपर कोई लेप नही
मुझे ही कह लो परमात्मा
जिस दिन मुझे तू जानेगा
अपना सारा संसार लगेगा
देखेगा खुद को सब मे तू
सब मे तू खुद को देखेगा
मुझे जानने के तीन तरीके
किसी को भी अपना लेना
भक्ति ज्ञान निष्काम कर्म से
अपने भीतर की थाह लेना
दिलमे बैठा मिलूंगा तुझको
सत चित आनन्द रूप हूँ मैं
जिसे खोजता फिरता जगमें
कस्तूरी सा सुगंध रूप हूँ मैं