दुल्हन सजी मंडप में बैठी
दिलमे हजारों अरमान लिए
क्या सोच रहा उस का मन
किन सपनो की उड़ान लिए
हां कैसा होगा घर-बार मेरा
हां कैसा होगा ससुराल मेरा
जिस से जीवन की डोर बंधी
विषय मे उसके सवाल लिए
मुझे अनजान जगह है जाना
परायो को अपना है बनाना
क्या होगा कैसे होगा नाजानू
कब कौन सी पतवार लिए
डर लगता मुझ को अनजाना
उलटे पुल्टे विचारों का आना
भविष्य के गर्त में क्या छुपा
जीवन कौन सा व्यापार लिए
हे ईश्वर मेरी भक्ति बनो तुम
इस द्रोपदी की शक्ति बनो तुम
संजोऊ सभी रिश्ते अच्छे से
मैं तेरे नाम का आधार लिए