मानव तेरे अहंकार का सारा धंधा चौपट हो गया
एक वायरस के आगे आज नपुंसक सा हो गया|
क्यों इतने सारे मुखोटे आज तूने ओढ़ के रखे है
उत्तार फैंक इन सबको अब जब तू नंगा हो गया|
पद पैसा और प्रतिष्ठा नही साथ में तेरे जाएगी
क्यों इन के पीछे तू बिल्कुल पागल सा हो गया|
करुणा दया प्रेम के भाव अब तेरे मन मे नही रहे
दुनियादारी में फंसकर कितना निष्ठुर सा हो गया|
सब तेरे कर्मो की सजा है जो बोया है सो काटेगा
प्रकृति का ये अटल नियम तुझ से कैसे खो गया|