खोज_ऐसे_महबूब_को

जिस दिन रब से आँख लड़ जायेगी

कोई याद फिर ना तुझको सताएगी

चौबीस घंटे तीन सौ पैंसठ दिन बस

उसके नाम के धड़कन गीत गाएगी

फकीरों जैसी तब हालत होगी तेरी

एक मदहोशी चारों और छा जाएगी

इस खुमारी का खुमार उतरेगा नही

मौत भी अपने मे समेट नही पाएगी

खोजना है तो खोज ऐसे महबूब को

फिर कोई चाह बाकी ना रह जाएगी

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