जब मैं शास्त्रों के पार गया
तब मन का अहंकार गया
शास्त्र थे नाव की मानिंद
जिनसे भवसागर तार गया
अगर इनमें ही उलझा रहता
मन की मन को कैसे कहता
जीवन का बेकार था जाना
समय से इनका भार गया
शास्त्रों की है गजब महिमा
परिपक्व करते धीमा धीमा
छत पर चढ़ो सीधी छोड़ो
वरना पढ़ने का सार गया
अज्ञानी से अभिमानी तक
शास्त्र सिर्फ बुद्धिमानी तक
अगर ये बात ना समझी तो
सफर सारा ही बेकार गया
जब सम नज़र बन जाए
दुनिया सतरंगी नजर आए
कोई विरोध किसी से ना हो
तो समझना बाजी मार गया
जब मैं शास्त्रों के पार गया
तब मन का अहंकार गया
शास्त्र थे नाव की मानिंद
जिनसे भवसागर तार गया