जिस दिन नजरें बदलेगी

भटकते फिरते दर दर वो नज़र नही आता
पुकार रहा हर कोई वो सुनना नही चाहता
थक गए है हार गए है रुक गए अब कदम
बिन किसी उम्मीद के अब चला नही जाता

ढूंढ रहे हो उसे वहां जहाँ उसका वास नही
जहाँ वो छिपा वहाँ कोई जाना नही चाहता
दूध में छिपा माखन और कस्तूरी बसे नाभि
मृग ढूंढे जंगल जंगल ता उम्र ढूंढता जाता

जिस दिन नजरें बदली नज़ारे बदल जाएंगे
जो ना दिखा अब तलक वो भी देख पायगे
जिस घड़ी खुद में दिखेगा बंधन टूट जाएंगे
चारो और हर किसी मे केवल उसको पाएंगे

डॉ मुकेश अग्रवाल

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *