जीवन एक यात्रा है सुख और दुख पड़ाव
समय बीतता जाता है ज्यूँ ज्यूँ बढ़ते पांव
चलते चलते राह में मिल जाते मुसाफिर
बिछुड़ते हुए फिर दे जाते नए नए ये घाव
मनोरम जीवन यात्रा में तीन चरण है आए
पहले आता बचपन मस्ती में जिसे बिताए
फिर आती जवानी जो सब की भा जाती
अंत मे आता बुढापा अपने संग ले जाए
संसार है एक रंगमंच सब को नाच नचाए
हर प्राणी है अभिनेता अपना रोल निभाए
सीन के पूरा होने पर गिर जाता है पर्दा
इस तरह पुराना जाता नया फिर आ आए
साल आता साल जाता उम्र है बढ़ती जाए
बड़े हो केवल कुछ ही बाकी बूढ़े होते जाए
जीवन का मर्म यदि समझ में ना आया
समझो मानव देह को व्यर्थ में हम गवाए
एक लम्बी यात्रा का है ये जीवन भी पड़ाव
भिन्न भिन्न जन्मों से गुज़र बने हमारे भाव
आओ अपने आप की करें हम पहचान
अध्यात्म की और करे अपना अब झुकाव
डॉ मुकेश अग्रवाल