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जीवन मात्र तुकबंदी नहीं

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जीवन मात्र तुकबंदी नहीं
ये एक गहन कविता है
ये सागर जैसी गहरी है
मोती वाली सरिता है ।

सुख दुःख दो पहलू है
किनारों जैसे साथ चले
जीवन पिसता जाए जब
चक्की के दो पाट चले ।

कभी राह में मिले मुसाफ़िर
कभी साथी बिछड़ जाए
कौन जाने अगले पल में
क्या अनहोनी घट जाए ।

लिए उमंगे चलो साथ में
साहस से तुम बढ़े चलो
कितने भी दुःख आए फिर
मस्ती में तुम जिए चलो ।

हर दुःख छोटा हो जाता है
गर हिम्मत की लकीर बड़ी
दुःख तुम से कभी बड़ा नहीं
गर इतनी तुम्हें समझ पड़ी ।

खुदा उनकी ख़ुद मदद करे
जो अपनी मदद आप करे
साहस से तुम करो सामना
हर दुःख जीवन से भाग पड़े ।।

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