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सारे जहाँ की ख़ुशियाँ तोड़ लाऊँ मैं
मिला कर इन सबको तुझे बनाऊँ मैं ।
उगते सूरज से थोड़ा प्रकाश चुराऊँ मैं
तेरे जीवन में नया उजियारा लाऊँ मैं ।
फूलो की ख़ुशबू से तेरी हँसी बनाऊँ मैं
महके जग ये सारा संग में मुस्काऊँ मैं ।
गंगा की निर्मल धारा आँगन ले आऊँ मैं
उसके पावन नीर से तेरी प्यास बुझाऊँ मैं ।
सागर की गहराई से मोती चुन लाऊँ मैं
माला बना के उनकी तुझको पहनाऊँ मैं ।
पवन के पंखो का एक झूला बनाऊँ मैं
बिठा के तुझ को उसमें ख़ूब झुलाऊँ मैं ।
चाँद से उसकी चाँदनी उधार ले आऊँ मैं
तेरे आने के रास्ते को ख़ूब सजाऊँ मैं ।
कोयल की बोली जैसी लॉरी सुनाऊँ मैं
तुझे सुला के फिर तेरे सपनो में आऊँ मैं ।
सावन की घटाओं को आवाज़ लगाऊँ मैं
वो श्रिंगार करे तुम्हारा लट सुलझाऊँ मैं ।
तारो की छांव में फिर तुझ को बिठलाऊँ मैं
प्रकृति तुम्हें दुल्हन बनायें दूल्हा बन जाऊँ मैं ।
हिमालय से ऊँचाई ले तेरी मूरत बनाऊँ मैं
हरदम निहारूँ उसको ख़ुद मूरत बन जाऊँ मैं ।
तेरी इस मनोहर छवि को मन में बसाऊँ मैं
तुम संग संग रहो सदा अपने पर इतराऊँ मैं ।।