भूल गया था मैं जिसे तूने उसका ख़्याल दिया
कैसे चुकाऊँगा कर्ज तूने जो मुझे उधार दिया|
चला जाता था अकेला गुम किन्ही ख़यालो में
जीवन का मर्म समझा तूने नया विचार दिया|
डूब ही जाता शायद बोझिल गम के सागर में
हाथ पकड़ वक्त पे मेरा तूने मुझे उबार दिया|
या माँ से ममता मिली या पिता से मिला दुलार
उनके बाद जीवन ने ही जैसे मुझे दुत्कार दिया|
हर तरफ मिले थपेड़े और हर तरफ ठोकर ही
पहली बार जीवन मे तुमने बस सत्कार दिया|
सन्नाटा था चारो तरफ पसरी एक खामोशी थी
ज्ञान की वीणा बजाकर तूने जीवन संवार दिया|
डॉ मुकेश अग्रवाल