जब आप मेरा ये ब्लॉग पढ़ रहे होगे तो भारतवर्ष में त्योहारों की महक अपने चरम पर होगी | माँ दुर्गा के प्रति आस्था की प्रतीक नवरात्र पूजा, माता द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाला अहोई माता का व्रत, पत्नी द्वारा अपने पति की मंगल कामना हेतु रखे जाने वाला करवाचौथ का व्रत, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक दशहरा तथा भगवान राम के अयोध्या वापस आने की ख़ुशी में मनाया जाने वाला दीपों का पर्व दीपावली – इन त्योहारों के गर्भ में छिपी आपसी सोहार्द की भावना सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बंधने का सन्देश देती है | त्योहारों की यह श्रृंखला जैसे गूँज गूँज कर कहना चाह रही हो की हम सब एक है, बेशक हमारा रहन सहन, खान- पान, भाषा-बोली, रीति-रिवाज़ भिन्न है, फिर भी हमारा सोचने का ढंग, हमारी प्रवृति व्यक्तिक न हो कर वैश्विक है, हम ने तो उन सभ्यताओं को भी आत्मसात किया है जिन्होंने कभी हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बनाने का वीभत्स कार्य किया था | हमारी संस्कृति वो महान संस्कृति है जहाँ शिवाजी और प्रताप जैसे वीर, भगतसिंह और आजाद जैसे देशभक्त, शिवी और कर्ण जैसे दानी, महावीर और गाँधी जैसे अहिंसा प्रेमी, हरीशचन्द्र और युधिस्टर जैसे सच्चाई के पुजारी, राम और श्रवण जैसे पुत्र, भरत और लक्ष्मण जैसे भाई, विवेकानन्द और दयानन्द जैसे संत, विदुर और चाणक्य जैसे नीतिज्ञ, एकलव्य और अर्जुन जैसे शिष्य, भीम और बलराम जैसे योद्धा तथा सीता और अनुसुइया जैसी पतिव्रता नारियाँ हुई है, फिर भी हम शहनशील है |
अयं निज परोवेति, गणना लघु चेतसाम ,
विशाल हृदयानाम तू, वसुधैव्य कुटुम्बकम
‘वसुधैव्य कुटुम्बकम’ की अवधारणा वाला देश भारत, अहम् ब्रह्मास्मि के द्वारा प्राणिमात्र में इश्वर को देखने वाला देश भारत, भगवान राम और कृष्ण की जन्मभूमि भारत आज अगर अलगाववाद और आतंकवाद रुपी दंशो से पीड़ित है तो क्या हम ये मान ले की भारतमाता के प्रति हमारे कर्तव्यों की इतिश्री हो गयी है क्या हम नपुंसक हो कर यह तमाशा देखने का जोखिम उठा सकते है, क्या सारा लांछन दूसरो पर थोप कर हम आराम की नींद सो सकते है, क्या यह हर भारतवासी का कर्तव्य नहीं बनता की हम इस जुल्म से अपनी भारतमाता की रक्षा करे और उसके और अधिक टुकड़े होने से बचाये ताकि फिर कोई दुशाशन, मोहम्मद गोरी, जनरल डायर इसे बुरी नजर से देखने की हिम्मत ना कर पाए | अगर हमारी रगों का खून जम कर सफ़ेद नहीं हो गया है, अगर हमारी भुजाओं को जंग नहीं लग गया है, अगर हमारी इच्छाशक्ति हमारा साथ नहीं छोड़ गयी है तो मेरे देशवासियों उठो, चापू उठाओ और इस देशरुपी किश्ती को इस अलगाववादरुपी सागर से बाहर निकालने में एकजुट होकर अपना हाथ बटाओ | शायद तुम अपने शक्ति को हनुमान की तरह भुला बैठे हो और इंतजार कर रहे हो की कोई जामवंत आएगा और तुम्हे तुम्हारी शक्ति याद दिलाएगा, पर साथियों तुम ही जामवंत हो, तुम ही हनुमान हो और तुम ही राम हो, तो उठो अपनी सीतारुपी भारत वर्ष को रावणरूपी अलगाववाद के चंगुल से बचा कर राम-राज्य स्थापित करो ताकि भारतवर्ष के त्योहारों में छिपी आपसी सोहार्द की भावना फिर से हमें एक सूत्र में बाँध सके |