स्थिर अंचल है स्थिर पवन है
पर क्यों मन मेरा चंचल है
लाघव है हर वस्तु में
ख़ामोशी हर जगह पर है
पर क्यों मन मेरा चंचल है
विजय डोर की पताका से
हर घडी लहराई है
हर घर में हर आंगन में
बज रही शहनाई है
मन में मुस्कान लिए सुंदर
हर एक का जीवन है
पर क्यों मन मेरा चंचल है
जिधर भी ये नज़र उठती है
प्यार के पर्वत लहराते हैं
गगन ,मेघ ,सूर्य चन्द्र
छठा दिखा कर मुस्काते हैं
हर नक्षत्र पर हर ग्रह पर
कुसुमित हरित शांत वन है
पर क्यों मन मेरा चंचल है