लू के थपेड़ों से आओ पशु पक्षियों को बचाए
दाना पानी देकर इनकी भूख व प्यास मिटाए
मूक बेबस निरीह है ये इनके प्रति फ़र्ज़ हमारा
इनकी खातिर आओ आज हम भंडार लगाए
सुबह सवेरे जब इनकी आवाज कानो में गूंजे
मिश्री सी मिठास घोलें जब जब गीत सुनाए
पर्यावरण का ये सब भी एक जरूरी हिस्सा
रक्षा करके इनकी प्रकृति का संतुलन बनाए
विलुप्त होती जा रही इनकी बहुत प्रजातियां
आओ हम सब मिल कर इनके प्राण बचाए
ईश्वर की सर्वोत्तम रचना अपना धर्म निभाए
इन्हें बचा सच्चे अर्थों में हम मानव कहलाए
-डॉ मुकेश अग्रवाल