पहुँचे प्रधानमंत्री लेह
किया सैनिको का जयघोष
याद दिलाई उन्हें शक्ति
भर दिया उनमें नवजोश
राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर
की उन्हें कविता सुनाई
तुम्हारे सिंहनाद से डोले
धरती बात ये दोहराई
साहस उस ऊंचाई से ऊंचा
तैनात आप है जहाँ
निश्चय उस घाटी से सख़्त
नापते जिसे रोज यहाँ
भुजाएं चट्टानों से मज़बूत
जो है चारो और खड़ी
इच्छाशक्ति पर्वत सी अटल
सबकी है नजर पड़ी
आत्मनिर्भरता का संकल्प
आप से है मजबूत
त्याग पुरुषार्थ बलिदान की
आप सब मूरत अटूट
गलवां घाटी के शहीदों को
स्वीकार हो मेरा नमन
बेकार ना जायेगी शहादत
मेरा आज उनको वचन
शांति और मित्रता से ही
सुन्दर बनता है ये संसार
निर्बलता नही केवल निडरता
ही शांति का आधार
कालांतर में विस्तारवाद ने
दुनिया को बड़ा सताया
उपनिवेश बना कर देशों को
देशों ने ही जुल्म ढाया
जियो और जीने दो सबको
ये दर्शन केवल महान
इसमें सब की उन्नति
विकासवाद का उत्तम स्थान
आओ जननी व जन्मभूमि
दोनों का हम करे वंदन
कोख़ रहे हर माँ की सुरक्षित
देश भी ना करे क्रंदन
बहुत आपदाओं से इकट्ठा
देश आज लड़ रहा
जवानों आप के साहस से
फिर भी आगे बढ़ रहा
आज यहाँ पर मैं आप को
विश्वास दिलाने आया हूँ
आत्मनिर्भर भारत का ही
संकल्प दोहराने आया हूँ