ये दावानल – ये भीषण-मंडल
ये चक्रवात – ये आंधिया
ये इन्द्रकोप – ये प्रदूषण
ये ब्रह्मा की है बांदिया
अति पाप की – अति लोभ की
अति कपट की – अति क्रोध की
जब चारों और मंडराती है
तब साम्य को बनाने हेतु
ये स्वर्ग लोक से आती है
कोई नहीं तोड़ है इनका
कोई नहीं जोड़ है इनका
ज्ञान बेकार है – विज्ञान बेकार है
बुधि बेकार है – विद्या बेकार है
तंत्र बेकार है – मंत्र बेकार है
अपनी जीत के सिवाय
इनको ना कुछ स्वीकार है
अपना इतिहास बनाने हेतु
ये हर युग में देखी जाती है
गर इन्हें रिझाना चाहते हो
अपना बनाना चाहते हो
तुम चाहते हो ये ना आयें
और तुम्हे दुखी ना बनाये
तब एक काम करना होगा
हर जन को प्राण करना होगा
असात्म्य को दूर करेंगे
प्रकृति संतुलन बनायेगे
सब मिल जुल इस कार्य को
श्रद्धा से सफल बनायेगे