क्या कोई आज तक समझा
भीड़ का मनोविज्ञान
भीड़ जब अपनी पर आती
करती भारी नुकसान|
न्याय अपने हाथ मे लेती
नैतिकता भी तय कर देती
कानून को ध्वस्त करके
बन जाती ये शैतान|
बातचीत की सब राह खत्म
त्वरित निर्णय का आभास
जैसे भीड़ आज बनी हो
तानाशाहों की सरताज़|
भीड़ कैसे इकट्ठी होती है
कैसे बनाती है तंत्र
अफवाहें या फिर घबराहट
बनते है इसके मंत्र|
सोशल मीडिया है करता
आग में घी का काम
डिजिटल हिंसा भड़कती
कानून व्यवस्था बदनाम|
सामाजिक विसंगति बढ़ती
बढ़ जाते है अपराध
भीड़तंत्र लोकतंत्र पर भारी
सिंह भी बने सियार|
कैसे पार पायें समस्या से
कैसे इसका हो निदान
भीड़ का मनोविज्ञान समझना
है एकमात्र समाधान|
डॉ मुकेश अग्रवाल