कल रात मैं चला रहा था,
अपने को अकेला पा रह था,
राह थी अनजान,”पर” मैं बढे जा रहा था,
अचानक पीछे ध्यान गया तो देखा,
कोई मेरे साथ चल रहा है……
ख्याल आया की कोई पीछा कर रहा है,
ये पीछे आने वाला है कौन,
अनजान राह पर अगर दो मुसाफिर की डगर एक ही होती है……..
तो उनकी मुलाक़ात जरूर होती है,
परन्तु वह था बिलकुल मोंन,
मैं घबरा गया,थोडा हडबडा गया,
कुछ ध्यान किया तो समझ आया,
की यह तो मेरा ही साया था,
जिससे मैं डर गया था,
मेरा अपना साया जो साथ देता है, हर जगह,
हर पल, दुःख में,दुविधा में,
हर जगह केवल यही रुकता है,
नहीं तो हर इंसान बिकता है,
समय साथ न दे,तो हर कोई साथ छोड़ जाता है,
कितना भी मोह हो,स्वार्थ पूर्ति पर मोह तोड़ जाता है,
परन्तु एक साया है,जो नहीं सोता,जो नहीं खोता,कही नहीं जाता,
किसी की भी पकड़ में नहीं आता,
हमेशा अपने साथ रहता है,
हमेशा हर गम इकठे सहता है,
यही है सच्चा हम सफ़र,
भरोसा करता है तो इसी पर कर……..!!!!