देख पीढाये दुनिया में
मेरे अन्र्मन्न पे ठेस लगी है!
भूख से भिलखते बच्चे,
ठड से ठिठुरते बच्चे,
बिन रोटी,
बिन कपडे के ये,
फूटपाथ पे सोते थे बच्चे !
निषदुर दुनिया देख रही है,
फिर भी कुछ न कर रही है,
देख विधाता की नियति को,
मेरे अन्र्मन्न पर ठेस लगी है !