चढ़ती परवान घटाओं में
उडती जवान निगाहों में
धूमिल होती राहों में
पतझड़ बनते चरागाहों में
मेरे देश का अस्तित्व
कहीं सो गया है
मेरे वर्षो पुराने – सदियों पुराने
भारत को क्या हो गया है
मदमस्त कलियों की छावों में
अंधियारी होती फिजाओं में
गम ढ़ोती हवाओं में
कमजोर वतन की जटाओं में
मेरे देश का अस्तित्व
कहीं सो गया है
मेरे वर्षो पुराने – सदियों पुराने
भारत को क्या हो गया है