हमारी समस्या है की हम भगवान राम को तो पूजते है पर जिन आदर्शो के कारण राम पूजे जाते है उन्हें हम अपने जीवन में आत्मसात नहीं करना चाहते, हम उम्मीद करते है की कोई राम आयेगा और एक युगांतकारी घटना घट जाएगी, एक परिवर्तन की बयार चल पड़ेगी ,हम क्यों नहीं कर पाते चलना उस दिशा में जो नई सुबह की और जाती है ,जहाँ एक नया आकाश हमारी बाट जोह रहा होता है, हम क्यों नहीं कर पाते परिवर्तन अपने भीतर जो हमारी सारी अपेक्षाओं को पूरा करते हुए एक नए समाज के निर्माण में सहयोगी हो, हम क्यों कमजोर हो जाते है, हम क्यों बेसहारा हो कर उम्र भर किसी की मदद की बैसाखियों का इन्तजार करते रहते है जबकि परमात्मा ने हमें शक्ति दी है उन सभी मुश्किलों का सामना करने की जो हमारे मार्ग में आती है
यदि हम वास्तव में आस्तिक है और हमारी भगवान में आस्था है तो यह हमारे कर्मो में परिलक्षित होनी चाहिए ,हमें बेहतर समाज के निर्माण के लिए स्वयं उठकर प्रयत्न करना चाहिए, उन आदर्शो अवं जीवन मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए जो एक व्यक्ति को पुरुष से महापुरुष बनाते है
भगवान कहते है
मुझे देखना है तो आँखे बंद कर लो
फिर चाँद की शीतल चांदनी में सो जाओ
क्यों की मैं अक्सर ख्वाब में आया करता हूँ
पागल है वो जो मुझे मंदिरों में ढूंढते फिरते है
मैं तो प्रेम का भूखा हूँ
प्रेम देख कर आशियाँ बनाया करता हूँ
मुझ को चाहने वालो इस जहाँ से प्यार करो
क्यों की इस जहाँ को भी मैं ही बनाया करता हूँ
मुझे देखना है तो आँखे बंद कर लो
फिर चाँद की शीतल चांदनी में सो जाओ
क्यों की मैं अक्सर ख्वाब में आया करता हूँ