बोझिल हवा के बोझ से
दबी हुई शाम यों बोली
एक कहकंशा तुम भी लगा लो
मरो न हम को गोली
शरारत तो हर कोई करता है
पर खुल जाने से डरता है
अँधेरे का फायदा उठा कर
खेलता है हर कोई होली
सीने पर तुम वार करो
पेट में छुरा क्यों घोपते हो
सचाई की खातिर मरेगी
मेरी ये सारी टोली
रंग-बिरंगी,मद-मस्त
कलियाँ बड़ी ही प्यारी है
कुछ पुण्य चाहते हो तो आज
उठा लो तुम इन की डोली
पेट पर लात मार के मेरे
तुम को क्या मिलेगा
खेलो तुम भी मुझ से आज
अनेक रंगों की होली
गर हम ना होती
चुनता संसार तब कलियों को
कलियुग की शान बचाने को
हम ने लगवाई है बोली
एक कहकंशा तुम भी लगा लो
मरो ना हम को गोली ……..