सांझे चूल्हे का सुख
विकृत अलगाव के दुःख से बहुत अलग है
साँझा होना व्यक्ति का वैचारिक तथ्य है
और विकृत होना प्रयोगात्मक तथ्य
साँझ में जब साँझा चूल्हा जलता है
बड़ी पीतल की कढाई में
काठ का चम्मच हिलता है
तो बन जाता है एक स्वादिष्ट मिश्रण भावनाओं का
जहा पर आस्थाएँ घूँघट ओढ़े
थाली में परोस लाती है भोजन
जिसे खाया जाता है मिलकर गाते हुए
और आनन्दित सुरों को एक साज मिल जाता है
जिस की तान में लय हो जाती है सम्पूरण संस्कृति
और एक नई सामाजिक संस्कृति का उदय
इस सँगीत से उत्त्पन्न होता है
यही वो संस्कृति है जो सांझी है
जिसमें है उमंगें सबके लिए
जिसमें है प्यार सबके लिए
यही है सांझी संस्कृति
यही है अपनी संस्कृति