तेरा मेरा झूठ है सब झूठी है मोह माया
राम नाम एक सत झूठी माटी की काया
बुरा जो ढूंढन चला कोई हाथ ना आया
जब अपने अंदर देखा उसे वही पे पाया
जानी सारी दुनिया अपना पता ना पाया
जंगल जंगल घूम लौट के घर को आया
पद पैसे प्रतिष्ठा के जाल में खुद को पाया
परमात्मा जब छोड़ा पदार्थ ही हाथ आया
आज वो दिन आया जब बहुत पछताया
व्यर्थ थी ये दौड़ सारी हीरा जन्म गंवाया
डॉ मुकेश अग्रवाल