आयुर्वेद महिमा

This poem is dedicated to Lord Dhanvantari which was written by me in 2nd prof of BAMS in 1994 at Baba Mast Nath Ayurvedic College, Rohtak.

आयु का वेद है जो
वो आयुर्वेद कहलाता है
सब रोगों को दूर भगा कर
स्वस्थ रहना सिखलाता है

सहस्त्राब्दियों से आयुर्वेद
अपना दायित्व निभा रहा है
चिकित्साशास्त्र की धुरी बनकर
सबका स्वास्थ्य बना रहा है

अतिप्राचीन,अतिसुसंस्कृत
यह वेद हमारा है
सभी जगह से थक हार कर
दिखता यही सहारा है

धन-त्रयोदश को भगवान धन्वन्तरी
समुन्द्र मंथन से प्रकट हुए
अमृत-कलश था हाथो में
सबके संकट दूर हुए

सब ऋषि-मुनियों ने तब
आयुर्वेद फैलाया था
स्वर्ग का सुख जन-मानस को
धरती पर उपलब्ध करवाया था

मध्य -कल में आयुर्वेद का
ह्रास जब होने लगा
तब स्वास्थ्य भारत -जन के
भाग्य पर रोने लगा
विदेशी पद्धतियाँ स्वास्थ्य की
अपना अस्तित्व ज़माने लगी
आयुर्वेद को ये सभी
गहरी धौंस दिखलाने लगी

पाश्चात्य-पद्धति के दुष्प्रभाव ने
अनोखा संकट ढाया है
आज जन-जन में फिर दोबारा
आयुर्वेद ही छाया है

अंत में यही कहना है मुझे
अपने देश महान से
आयुर्वेद अपनाओ तुम
रोग भागो जहान से

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