मैं कैसे मान लू,
कि तुम हो ही नहीं,
तुम अक्सर ख्वाब में आया करती हो,
तड़प तड़प कर ही सही,
पर अपना नाम बतलाया करती हूँ,
है हुस्न जिसका क़यामत,
है उदास जिसकी बिजली…..
तुम वो शबनम हो,
जो मेरी प्यास भुझाया करती हो,
मैं कैसे…………….
कब से देखा करता हूँ,
एक तस्वीर धुंधली सी,
कविता बन नहीं पाती,
कि तुम उड़ जाती हो…….
आज अचानक मिल गई हो,
मुझ को तुम तकदीर से,
वरना एक झलक दिखा कर,
गायब हो जाया करती हो……
मुझे उम्मीद है मिलोगी,
जीवन के सफ़र में तुम,
इन ख्वाबो का कुछ मतलब है,
तुम यू ही न आया करती हो
मैं कैसे……………!!!