महाभारत में जब जब भी
चीरहरण दिखाया जाता है
तब तब सब से बड़ा प्रश्न
यही निकल कर आता है|
कि क्या द्रोपदी एक वस्तु है
जिसे दांव पर लगाया जाता है
या पुरुषप्रधान समाज अपना
कुलषित निर्णय सुनाता है|
युधिष्ठिर सहित पांचो पांडव
जुआरी बन कर खेले चौसर
कुटिल शकुनि पासो पर आज
कुन्तीपुत्रो को नाच नचाता है|
कहते जिसे सब धर्मराज है
उसे धर्म का किंचित ज्ञान नही
रण में ही होती है हार जीत
जुएं में कोई राज्य गंवाता है|
बात केवल राज्य की नही
व्यक्तियों को वस्तु बनाता है
पाँच भाइयो सहित युधिष्ठिर
खुद दांव पर लग जाता है|
यहीं पर बात खत्म नही होती
एक कदम वो आगे बढ़ाता है
इंद्रप्रस्थ की महारानी को भी
इस धूत्त की भेंट चढ़ाता है|
हारने पर चक्रवर्ती राजा के
दुर्योधन यूँ दहाड़ लगाता है
केशो से खींच कर दुशाशन
द्रोपदी को सभा मे लाता है|
सूर्यपुत्र कर्ण जैसा वीर भी
गांधारीपुत्र के सुर में गाता है
भरी सभा में द्रोपदी को वो
वैश्या कह कर बुलाता है|
भरतवंशियों के क्रीड़ाग्रह मे
उपस्थित है पितामह भीष्म
क्या प्रतिज्ञा से बंध कर कोई
इस तरह चुप रह पाता है|
द्रोणाचार्य मुँह लटका कर बैठे
जिनकी ये बेटी भी पुत्रवधु भी
इन से द्रोपदी का चीरहरण
ना जाने कैसे देखा जाता है|
कुरुवंश के कुलगुरु कृपाचार्य
सुशोभित अपने आसन पर
पाप और अनाचार का दृश्य
जाने उन्हें क्यूँकर सुहाता है|
अंधा है राजा हस्तिनापुर का
पुत्रमोह में भी हुआ अंधा है
हठी महत्वाकांक्षा पूरी करने में
धृतराष्ट्र बहरा भी हो जाता है|
द्रोपदी पूछती विदुर से काका
ये कायरो की महासभा है क्या
घर की लुटती लाज देख कर
क्यों लहू में उबाल नही आता है|
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन के धनुष
गांडीव को जंग लग जाता है
सौ हाथियों के बल वाला भीम
कैसे नपुंसक बन जाता है|
खींच दुशासन खींच वस्त्रों को
कर दे नंगा दासी को सभा मे
कहने वाले दुर्योधन की जीभ
क्यों नही कोई काट गिराता है|
इतिहास मौन है और समय भी
कोई तो इस प्रश्न का उत्तर दो
हर काल और हर युग मे क्यों
नारी को भोग्या समझा जाता है|
द्रोपदी को चीरहरण से बचाने
कलयुग मे कृष्ण ना आयेंगे
अबला को सबला बनना होगा
वो खुद अपनी भाग्यविधाता है
डॉ मुकेश अग्रवाल